क़ुरआन में साफ हुक्म हैं कि
''लोग एक दूसरे का मजाक न उड़ाये, एक दूसरे की हंसी न करें।'' (49:11) '' और तुम आपस में एक दूसरे पर चोटें न करो (49:11)
फब्तियां न कसो, इल्जाम न धरो, ताने न दो, खुल्लम खुल्ला या होठो के अन्दर या इशारों से उसको जलील न करो।
''एक दूसरे के बुरे नाम न रखों।''(49:11)
''और तुम मे से कोर्इ किसी की पीठ पीछे उसकी बुरार्इ न करें।़(49:12)
'' और जब तुम लोगो के बीच फैसला करो तो न्याय के साथ करों।'' (4:58)
''किसी जान को हक के बगैर कत्ल न करो, जिसे अल्लाह ने हराम किया हैं।'' (6:152)
मुसलमानों के मालों में मदद मांगने वाले और महरूम रह जाने वाले का हक हैं। ''(05:19)
'' किसी गिरोह, की दुश्मनी तुम्हे इतना न भड़का दे.................कि तुम नामुनासिब ज्यादती करने लगो।'' (5:8)
हमने तुम को कौमों और कबीलों में बांट दिया, ताकि तुम एक दूसरे को पहचानों। ''(49:13)
''नेकी और परहेजगारी में सहयोग करो। बदी और गुनाह के मामले में सहयोग न करों।'' (5:2)
''लोग एक दूसरे का मजाक न उड़ाये, एक दूसरे की हंसी न करें।'' (49:11) '' और तुम आपस में एक दूसरे पर चोटें न करो (49:11)
फब्तियां न कसो, इल्जाम न धरो, ताने न दो, खुल्लम खुल्ला या होठो के अन्दर या इशारों से उसको जलील न करो।
''एक दूसरे के बुरे नाम न रखों।''(49:11)
''और तुम मे से कोर्इ किसी की पीठ पीछे उसकी बुरार्इ न करें।़(49:12)
'' और जब तुम लोगो के बीच फैसला करो तो न्याय के साथ करों।'' (4:58)
''किसी जान को हक के बगैर कत्ल न करो, जिसे अल्लाह ने हराम किया हैं।'' (6:152)
मुसलमानों के मालों में मदद मांगने वाले और महरूम रह जाने वाले का हक हैं। ''(05:19)
'' किसी गिरोह, की दुश्मनी तुम्हे इतना न भड़का दे.................कि तुम नामुनासिब ज्यादती करने लगो।'' (5:8)
हमने तुम को कौमों और कबीलों में बांट दिया, ताकि तुम एक दूसरे को पहचानों। ''(49:13)
''नेकी और परहेजगारी में सहयोग करो। बदी और गुनाह के मामले में सहयोग न करों।'' (5:2)
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