Sunday, May 5, 2013

A POEM BY MUNAWWAR RANA

बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
हमारे घर के बरतन पे आई.एस.आई लिक्खा है

हम पे जो बीत चुकी है वो कहाँ लिक्खा है
हम पे जो बीत रही है वो कहाँ कहते हैं

वैसे ये बात बताने की नहीं है लेकिन
हम तेरे इश्क़ में बरबाद हैं हाँ कहते हैं

सरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

तुझको ऐ ख़ाक-ए-वतन मेरे तयम्मुम की क़सम
तू बता दे जो ये सजदों के निशाँ कहते हैं

आपने खुल के मुहब्बत नहीं की है हमसे
आप भाई नहीं कहते हैं मियाँ कहते हैं

कुछ मेरी वफ़ादारी का इनआम दिया जाये
इल्ज़ाम ही देना है तो इल्ज़ाम दिया जाये

तिरशूल कि तक्सीम अगर जुर्म नहीं है
तिरशूल बनाने का हमें काम दिया जाये

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