Wednesday, June 26, 2013

Written by one of the victims in Uttarakhand Flood in India



वो पावन नगरी का आदमी था
जिसने मुझसे एक लाख रूपए मेरे बच्चे को पानी पिलाने के लिए मांगे थे
बेबसी में पैसों की कोई फ़िक्र नहीं थी

किसी तरह बेटा बच जाता
परन्तु वो भला आदमी पैसे लेकर भाग गया
मेरा बेटा प्यास से मर गया
नहीं वो दाऊद इब्राहीम नहीं था
वो पावन नगरी का आदमी था
नहीं वो टाटा अम्बानी बिड़ला पोस्को जिंदल एस्सार जैसे लुटेरे नहीं थे
वे पावन नगरी के बनिए थे
जिन्होंने मुझसे बिस्कुट के एक पैकेट के लिए दो हज़ार रूपए मांगे थे
भूखमरी में दस हज़ार भी मांगते तो दे देता
मैं दो दो हज़ार रुपयों के बिस्कुट खाकर जिंदा हूँ
पानी हर तरफ था मगर उसी पानी में लाशें भी सड़ रही थीं
इसलिए मैंने एक हज़ार रूपए में एक लीटर पानी खरीद कर प्यास बुझाई
जो जिंदा इंसानों को लूट रहे थे
वो लाशों को कैसे छोड़ देते
मेरी नज़रों के सामने लाशों को लूटा जा रहा था
लाशों की तलाशी हो रही थी, पैसे, मोबाइल, ज़ेवर नॊच कर
ये वहशी दूसरी लाशों को अपना शिकार बना रहे थे
मैंने भी एक महापाप किया है
एक लाश की पॉकेट से मोबाइल निकाल कर फ़ोन करने की कोशिश की
पाप कर के भी नेटवर्क नहीं मिला पाया
कैसे घरवालों को बताऊँ कि गुड्डा मर गया केवल मैं जिंदा हूँ
मैंने सरकार को गालियाँ दी हैं जीवन भर
मगर जब मुसीबतों में देशवासियों का लुटेरा रूप देखा
तो अब गालियाँ किस को दूं?
वोट देने वालों में लुटेरे भी हैं कातिल भी
नहीं वो दाऊद इब्राहीम नहीं हैं
वो पावन नगरी के आदमी हैं
मुसीबतों का पहाड़ टूटता है तो
इंसानों का असली चेहरा नज़र आता है
लुटेरों और कातिलों के चेहरे से मुखौटा हट जाता है
और आम लोगों के बीच भगवान् भी नज़र आ जाता है
मैंने उन्हें भी देखा जो स्वयं भूखे रह कर
अनजान लोगों की मदद कर रहे थे
मैंने उन्हें भी देखा जो अपनी जान की बाज़ी लगा कर
बेसहारा लोगों को बचा रहे थे
नहीं वे साधू संतों जैसे नहीं दिख रहे थे
वे पावन नगरी के आम आदमी
हैं

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