बात 10 सितम्बर सन् 1965 की है जब भारत और
पाकिस्तान का युद्व एक अजीबो-गरीब मोड लेना चाह
रहा था। पाकिस्तान का नापाक इरादा अमृतसर पर
अपना अधिकार कर लेने का था। अमृतसर से पश्चिम
की ओर वीर अब्दुल हमीद कसूर क्षेत्र में तैनात थे।
यही से पाकिस्तानी कमाण्डर ने आगे बढकर अमृतसर को घेरने
की योजना बनाई हुई थी। अपनी योजना के
अनुसार पैटन टैंकों के फौलादी लाव लश्कर के साथ
फौलादी गोले बरसाते हुए दुश्मन फौज भारतीय सेना पर टूट
पडी। परिस्थिति की गम्भीरता को समझने में हमीद
को देर न लगी। उन्होंने देखा दुश्मन मुल्क
की तैयारी बहुत अधिक है वही टैंकों के इस भीषण आक्रमण
को रोकने में मृत्यु निश्चित है लेकिन हमीद
को अपनी जान से ज्यादा देश प्यारा था। और वो इस क्षण
की प्रतिक्षा में थे वो एक सच्चे सिपाही के रूप में अपने
कर्तव्य को निभाना चाहते थे। उन्होंने मन ही मन
संकल्प लिया कि वो दुश्मन को एक इंच भी आगे
नहीं बढने देगे। बिना समय गुजारे ही तोप युक्त अपनी जीप
को एक टीले
के सहारे रोक कर यह भारत का वीर पाकिस्तानी पैटन
टैंकों पर भीषण गोलाबारी करने लगा। और देखते ही देखते
हमीद ने मिट्टी के घरौंदों की तरह पाकिस्तान के तीन
टैंकों को ध्वस्त कर दिया। अजय समझे जाने वाले
पाकिस्तान के टैंकों पर वीर अब्दुल के गोले इतने सधे हुए पड़ रहे
थे कि गोला पड़ते ही उन में आग लग जाती थी।
अपने वीर नेता की बहादुरी देख भारतीय जवान दुगने जोश
में भर गये और दुश्मन पर टूट पडे। अपने पैटन टैंक ध्वस्त
होते देख दुश्मन सेना का कमाण्डर गुस्से से पागल हो गया।
अपने टैंकों पर गोले बरसाने वाले भारतीय
को उसकी निगाहें तलाशने लगी। और आखिरकार उस
की निगाहों ने वीर अब्दुल हमीद को टीले के पीछे देख
लिया। फिर क्या था पूरी पाकिस्तानी सेना के
टैंकों का मुंह हमीद की तरफ मुड़ गया और देखते ही देखते
दुश्मन के गोले अब्दुल हमीद की जीप के आगे पीछे दाय
बाय सभी ओर गिरने लगे। दरअसल वो और उन की जीप
ही अब दुश्मन का निशाना बन चुकी थी। लेकिन वीर अब्दुल हमीद
देश पर मर मिटने के लिये
पैदा और सेना में भर्ती हुए थे मौत का डर उन्हें
कभी था ही नहीं। लिहाजा वो साहस के साथ अपने मोर्चे
पर डटे रहे। आग और गोले के बीच देश का ये बहादुर
सिपाही अपनी तोप जीप से पाकिस्तान के चौथे टैंक पर
गोला फेंक ही रहा था कि दुश्मन के गोले का एक भीषण प्रहार
उन पर हुआ और भारत मां का लाडला ये
सिपाही मातृभूमि की रक्षा करते हुए देश पर शहीद
हो गया। परन्तु उनके बलिदान ने अपनी सेना में वो जोश
भरा की दुश्मन का दिल दहल उठा। वीर अब्दुल हमीद ने
अपनी शहादत से ये भी साबित किया कि जंग
हथियारों से नहीं बल्कि हौसलों से लड़ी जाती है। देश का ये
सच्चा देशभक्त अपने भाई से इस युद्व में कोई
छोटा चक्र पाने का वादा कर के आया था। पर इस वीर
को अब्दुल हमीद के साथ ही वीर अब्दुल हमीद नाम
मिला और प्राप्त हुआ सेना का सब से बड़ा चक्र "परमवीर
चक्र"
कसूर क्षेत्र में बनी अमर शहीद वीर अब्दुल हमीद
की समाधि आज भी देश पर मर मिटने
की लाखों करोड़ों लोगों को यूं ही प्रेरणा देती रहेगी।
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