इस्लाम और मानव अधिकार
हर मांगने वाले और तंगदस्त का यह हक हैं कि उसकी मदद की जाये
कुरआन मे यह हुक्म दिया गया हैं कि '' और मुसलमानों के मालों में मदद मांगने वाले और महरूम रह जाने वाले का हक हैं। ''(05:19) पहली बात तो यह कि इस हुक्म में जो शब्द आये है वे सबके लिए हैं, उस में मदद करने को किसी धर्म विशे
"ा के साथ खास नहीं किया गया हैं, और दूसरे यह कि हुक्म मक्के मे दिया गया था, जहां मुस्लिम समाज का कोर्इबाकायदा वजूद ही नही था। और आम तौर पर मुसलमानों का वास्ता गैर-मुस्लिम आबादी ही से होता था। इसलिए कुरआन की उक्त आयत का साफ मतलब यह हैं कि मुसलमानों के माल पर हर मदद मांगने वाले और हर तंगदस्त और महरूम रह जाने वाले इन्सान का हक हैं। यह हरगिज़ नही देखा जायेगा कि वह अपनी कौम या अपने देश का हैं या किसी दूसरी कौम, देश या नस्ल से उसका संबंध हैं। आप हैसियत और सकत रखते हो और कोर्इ जरूरत मन्द आप से मदद मांगे, या आप को मालूम हो जाये कि वह जरूरत मंद है तो आप जरूर उसकी मदद करें। खुदा ने आप पर उसका यह हक कायम कर दिया हैं।
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